डोमनमऊ में कालीराणा परिवार द्वारा भागवत कथा का भव्य आयोजन, कलश यात्रा के साथ शुरू हुई भागवत कथा …

भागवत की कथा, कथा नही अनुष्ठान है,  ज्ञान भक्ति ओर वैराग्य भागवत कथा से ही मिलता है – संत कमलेश मुरारी

डोमनमऊ में कालीराणा परिवार द्वारा भागवत कथा का भव्य आयोजन, कलश यात्रा के साथ शुरू हुई भागवत कथा …

लोकमतचक्र.कॉम।

मसनगांव – ग्राम डोमनमऊ में कालीराणा परिवार द्वारा करवाई जा रही भागवत कथा का भव्य आयोजन कलश यात्रा के साथ प्रारंभ हुआ। कथा के पहले दिन कथा वाचक संत कमलेश मुरारी महाराज ने धुंधकारी और गौकर्ण की कथा सुनाते हुए बताया की भागवत की कथा, कथा नही अनुष्ठान है जिसे विधि विधान के साथ की जानी चाहिए। यह कथा मनुष्य को ही नही प्रेतो का भी उद्धार कर देती है । कथा के माध्यम से आत्म देव की कथा का वर्णन करते हुए बताया कि आत्मदेव ब्राह्मण के यहां पर संतान नहीं थी तब एक संत ने उन्हे आशीर्वाद देते हुए पुत्र होने की लिए फल प्रदान किया, जिससे उनकी पत्नी ने गाय और अपनी बहन को खिला दिया जिससे गोकर्ण और धुंधकारी पैदा हुए। भागवत की कथा को महात्मा विदुर को मैत्रेय जी ने सुनाई थी जब महाभारत के युद्ध के बाद विदुर का मन अधिक विचलित था तब नदी के किनारे बैठ कर भागवत कथा सुनने से महात्मा विदुर मन शांत हुआ । 

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इसी प्रकार इस कथा को चार महामुनि सनक,  सनानंदन, सनातन और सनत कुमार ने नारद जी को सुनाई थी।आज के आधुनिक युग में भी सनातन धर्म को नहीं भूलना चाहिए। भगवान का विधि विधान से पूजन होना चाहिए । ज्ञान भक्ति वैराग्य भागवत कथा से ही मिलता है। जिस व्यक्ति को अपने प्रश्न का उत्तर या समाधान नहीं मिलता वह आत्महत्या करने की सोचता है । भगवान के भक्त का कोई परम भक्त यदि आशीर्वाद देता है तो भगवान भी हाथ में लिखी रेखाओं को दवा देते है। जिसका उदाहरण देते हुए संत कमलेश मुरारी ने बताया कि एक महिला के हाथ में संतान का योग नहीं था परंतु ईश्वर के परम भक्त ने आशीर्वाद दिया तो उसे दो पुत्रो की प्राप्ती हुई । इसलिए कभी भी कहीं भी जाओ बड़े बूढ़ों माता-पिता तीर्थ मंदिर संतो का आशीर्वाद जरूर लेना चाहिए, आशीर्वाद से मनुष्य के योग न होने के बाद भी हाथ में लिखी हुई रेखाएं दब जाती है और सिद्ध पुरुषों की वाणी सिद्ध हो जाती है । इसके लिए भगवान विष्णु तथा नारद का कथा का वर्णन करते हुए बताया कि भगवान के भक्तों द्वारा जिस को आशीर्वाद दिया जाता है उसे भगवान जरूर पूरा करते हैं । साधु कोई भी हो वह कभी भी नहीं भीख नही मांगता साधु केवल भिक्षा मांगता है। आत्मा का धर्म बताते हुए कहा कि आत्मा का धर्म है भूख और प्यास उसी प्रकार मन का धर्म है सुख और दुख और शरीर का धर्म है जरा और मृत्यु। भोजन की व्याख्या करते हुए बताया कि बनाने वाले की मानसिकता पर भोजन का स्वाद निर्भर होता है भोजन को जब भगवान को भोग लगाया जाता है तो भगवान उसे सूक्ष्म रूप से ग्रहण करते हैं। कालीराणा परिवार के द्वारा आयोजित इस भागवत कथा में पहले दिन कलश यात्रा निकाली गई जिसका गांव में जगह-जगह स्वागत किया गया।

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