पर्युषण महापर्व : प्राणी-रक्षण और इन्द्रिय दमन करना संयम है – आर्यिका सुबोधमति माताजी

पर्युषण महापर्व : प्राणी-रक्षण और इन्द्रिय दमन करना संयम है – आर्यिका सुबोधमति माताजी

पर्युषण महापर्व के छटवें दिन उत्तम संयम धर्म की आराधना की दिगम्बर जैन समाज ने, धुप अर्पण कर कि कर्मों की निर्जरा

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लोकमतचक्र  डॉट कॉम।

हरदा : स्पर्शन, रसना, घ्राण, नेत्र, कर्ण और मन पर नियंत्रण (दमन, कन्ट्रोल) करना इन्द्रिय-संयम है। पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय जीवों की रक्षा करना प्राणी संयम है इन दोनों संयमों में इन्द्रिय संयम मुख्य है क्योंकि इन्द्रिय संयम प्राणी संयम का कारण है, इन्द्रिय संयम होने पर भी प्राणी संयम होता हैं, बिना इन्द्रिय संयम के प्राणी संयम नहीं हो सकता। उक्त बाते आर्यिका 105 सुबोधमति माताजी ने पर्युषण महापर्व के छटवें दिन उत्तम संयम धर्म के अवसर पर मंदिर जी में प्रवचन देते हुए कही।

आर्यिका श्री ने कहा कि इन्द्रियाँ बाह्म पदार्थों का ज्ञान कराने में कारण है, इस कारण तो वे आत्मा के लिये लाभदायक हैं क्योंकि संसारी आत्मा इन्द्रियों के बिना पदार्थों को जान नहीं सकता। पँचेन्द्रिय जीव की यदि नेत्र-इन्द्रिय बिगड़ जावे तो देखने की शक्ति रखने वाला भी आत्मा किसी वस्तु को देख नहीं सकता। परंतु इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयों की ओर आत्मा तो आकृष्ट (खींच) करके पथभ्रष्ट कर देती हैं, आत्मविमुख करके आत्मा को अन्य सांसारिक भोगों में तन्मय कर देती हैं। मोहित करके विवेक शून्य कर डालती हैं, जिससे कि साँसारिक आत्मा बाह्म-दृष्टि बन कर अपने फँसने के लिये स्वयं कर्मजाल बनाया करता है। इन्द्रियों का यह कार्य आत्मा के लिये दुख दायक है।

आर्यिका श्री ने कहा कि सारा सँसार इन्द्रियों का दास बना हुआ है। बड़े-बड़े बलवान योद्धा और विचारशील विद्वान भी इन्द्रियों के गुलाम बने हुए हैं, अपना अधिकतर समय इन्द्रियों को तृप्त करने में लगाया करते हैं। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि हाथी कितना बलवान प्राणी है किंतु कामातुर होकर स्पर्शन इन्द्रियों को तृप्त करने के लिये मनुष्य के जाल में फँस जाता है। हाथी पकड़ने वाले मनुष्य हाथियों के जाल में एक बहुत बड़ा गड्ढा खोदते हैं। उसको बहुत पतली लकडि़यों से पाटकर उस पर हरी घास फैला देता हैं और उसके ऊपर कागज की एक सुंदर हथिनी बनाकर खड़ी कर देते हैं। हाथी उस हाथिनी को सच्ची हथिनी समझकर कामातुर होकर उस गड्ढे की ओर झपटता है जिससे पतली लकडि़याँ टूट जाती हैं और हाथी उस गड्ढे में गिर जाता है, वहाँ से निकल नहीं सकता तथा शिकारियों द्वारा पकड़ लिया जाता है। इस तरह स्पर्शन इन्द्रियों के वश में होकर कामातुर मनुष्य भी आत्म गौरव, धन, कीर्ति बल पराक्रम नष्ट भ्रष्ट करके सर्वस्व गँवा देते हैं, प्राण तक अर्पण कर देते हैं।

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श्री दिगंबर जैन समाज के कोषाध्यक्ष राजीव जैन एवं ट्रस्टी आकाश लहरी ने बताया कि नगर के चारों श्री दिगंबर जैन मंदिरों में सोमवार को उत्तम संयम धर्म की पूजा अर्चना की गई। इस अवसर पर श्रीमति संध्या संजय बजाज द्वारा श्री पंचमेरू व्रत उपवास 5 वर्ष तक संपन्न किए जाकर आज उसका निष्ठापन किया गया । इस अवसर पर उन्होने एक चांदी का छत्र मंदिरजी में दान दिया है। खेड़ीपुरा स्थित श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर में श्रीजी की शांतिधारा करने का सौभाग्य संजय, सपन बजाज को प्राप्त हुआ। इंदौर रोड़ स्थित श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर में श्रीजी की शांतिधारा करने का सौभाग्य राकेश, पंकज, बसंत रपरिया जैन को प्राप्त हुआ। वहीं स्टेडियम स्थित श्री चंद प्रभु जिनालय में शांतिधारा का सौभाग्य राजेश, संजय निर्मल जी पाटनी परिवार को प्राप्त हुआ।

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