मांडने बनाने की परंपरा पहले शहरी घरों में भी थी। अब यह सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र में शेष रह गई है। समय का अभाव या फिर चिकने और पक्के फर्श पर मांडने नहीं बन पाना इसका बहुत बड़ा कारण है । आजकल छोटे और बड़े मांडनो के स्टीकर आते हैं। शहरों में चिकने और पक्के फर्श पर चिपका कर भी इस परंपरा का निर्वाह किया जा रहा है। मांडना, जिसे राजस्थान, मालवा और निमाड़ में “मंडन” या सजावट कहा जाता है, धार्मिक और सामाजिक अवसरों पर घर की सजावट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
मांडना परंपरा का विकास
परंपरागत रूप: यह कला राजस्थान, मालवा और निमाड़ जैसे क्षेत्रों में प्रचलित है, जहाँ महिलाएँ इसे ज़मीन या दीवारों पर बनाती हैं। यह संस्कृत के शब्द ‘मंडन’ से बना है, जिसका अर्थ है ‘सजावट’ या ‘सज्जा’।
आधुनिक रूपांतरण:
मांडना को अब आधुनिक घरों में भी लाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
बाजार में छोटे और बड़े मांडना स्टिकर उपलब्ध हैं।
इन्हें चिकने और पक्के फर्श पर चिपकाकर पारंपरिक कला को एक नया रूप दिया जा रहा है।
सांस्कृतिक महत्व:
मांडना का उपयोग विभिन्न शुभ अवसरों जैसे कि धार्मिक पर्वों, शादी-विवाह और जन्मोत्सव पर किया जाता है। यह प्राचीन वैदिक संस्कृति का भी प्रतीक है।
















