भोपाल । मध्यप्रदेश में नई सरकार के गठन पश्चात से ही तबादलों को लेकर संशय बना हुआ है। लंबे समय से प्रतिबंध हटने का इंतजार कर रहे कर्मचारियों को अभी और 5 महीने इंतजार करना पड़ेगा। मिड सेशन के चलते तबादलें नहीं करना चाहती सरकार। यदि ट्रांसफर से प्रतिबंध हटा तो इसका सीधा असर कर्मचारियों के साथ ही उनके बच्चों पर पड़ेगा। इसलिए अब अगले साल अप्रैल में ही ट्रांसफर पर से बैन हटने की संभावना है।
मोहन कैबिनेट के मंत्रियों ने भी इसके संकेत दिए हैं। अब ट्रांसफर न होने का सबसे बड़ा कारण स्कूल शिक्षा के प्रभावित होने को बताया जा रहा है। बहुत जरूरी हुआ तो सीएम समन्वय से ट्रांसफर किए जाते रहेंगे। लोकसभा चुनाव के बाद से ही प्रदेश के कर्मचारी ट्रांसफर से प्रतिबंध हटाने की मांग कर रहे हैं। इसको लेकर कई बार मंत्रियों ने भी कैबिनेट बैठक और अन्य मौकों पर सीएम से प्रतिबंध शिथिल करने की मांग रखी, लेकिन मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव इसे टालते जा रहे हैं।
सितंबर में कैबिनेट की अनौपचारिक बैठक में इस पर काफी देर तक चर्चा भी हुई थी, तब सीएम ने अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में प्रतिबंध हटाने का आश्वासन देकर बात टाल दी थी। अक्टूबर में हुई कैबिनेट बैठकों में इस पर चर्चा नहीं हुई है। इसलिए अब इसका टलना तय माना जा रहा है। अब मंत्रियों और अफसरों का भी मानना है कि मिड-सेशन में तबादले किए तो पढ़ाई प्रभावित होगी। गत दिवस एक कैबिनेट मंत्री ने तबादले टलने के संकेत देते हुए कहा कि अब अप्रैल में ही इस पर प्रतिबंध हटने की उम्मीद है। इसकी वजह तबादले के दायरे में आने वाले स्कूल शिक्षक और कर्मचारियों के बच्चे हैं। अफसरों ने भी सहमति जताई कि प्रदेश में
सबसे अधिक अमला स्कूल शिक्षा विभाग का है। यदि ट्रांसफर हुए तो बड़े पैमाने पर स्कूल टीचर्स भी तबादले की जद में आएंगे, जिससे स्कूलों में पढ़ाई प्रभावित होगी। इससे काफी अव्यवस्था की स्थिति बन जाएगी और शिक्षकों का विद्यालयों में सेटअप गड़बड़ा जाएगा। चूंकि अब स्कूलों में अर्द्धवार्षिक परीक्षाएं हो चुकी हैं, बच्चों की पढ़ाई के साथ उनके एडमिशन में भी समस्याएं आएंगी। इसलिए सरकार इस स्थिति से बचना चाहती है। ऐसे में मिड-सेशन के बजाय स्कूल सेशन खत्म होने के बाद मार्च या अप्रैल में ही तबादलों पर प्रतिबंध हटने की संभावना है।
उल्लेखनीय है कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में शिक्षकों की तबादला नीति बनी थी। जिसमें ऑनलाइन आवेदन लेकर तीन स्थानों की च्वाइस फिलिंग कराई गई थी। इस नीति को शिक्षकों ने सराहा भी था क्योंकि विद्यालयों में पद रिक्त होने पर आसानी से बगैर लेन-देन के तबादले होते थे। इसमें यह भी विशेष था कि तबादले स्कूल बंद होने के बाद ही किए जाते थे, जिससे पढ़ाई प्रभावित नहीं होती थी।
Post Comment