सुमेरू पर्वत पर पांडुक शिला पर विराजमान कर इंद्रों ने किया जन्माभिषेक
हरदा (सार्थक जैन)। टिमरनी नगर में चल रहे ऐतिहासिक श्रीमज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक महोत्सव एवं विश्व शांति महायज्ञ के चौथे दिन भगवान का जन्मकल्याणक मनाया गया । प्रात:काल शुभमुहूर्त में भगवान के जन्म के पश्चात अयोध्या नगरी बने अमृतश्री कॉलेज परिसर स्थित आयोजन स्थल पर लगे राजा नाभिराय के दरबार में सौधर्म इंद्र इंद्राणी सहित उपस्थित हुए ओर भगवान को ऐरावत हाथी पर विराजितकर कर नगर भ्रमण करवाते हुए सुमेरू पर्वत स्थित पांडुकशिला पर ले जा कर जन्माभिषेक किया । इस अवसर पर उपस्थित सभी इंद्रों द्वारा क्रमबद्ध रूप से भगवान का जन्माभिषेक किया । शोभायात्रा नगर के प्रमुख मार्ग से होती हुई निकली जिसमें गजराज ,कलश, रथ यात्रा धार्मिक ,संगीतमय धुन के साथ निकाली गई जिसमें जैन बंधुओ ने हर्षोल्लाह के साथ भाग लिया। जगह जगह शोभायात्रा का स्वागत,पूजन हुआ,वैश्य समाज के लोगो ने पूजन अर्चन स्वागत किया। सैकड़ो की संख्या में नगर क्षेत्र सहित अन्य जिलों,प्रान्तों से भी श्रद्धालु कार्यक्रम में शामिल हुए ।
मुनिश्री निर्णयसागर महाराज ने उपस्थित श्रावकों को संबोधित करते हुए जन्मकल्याणक का महत्व बताया । मुनिश्री ने प्रवचन में, अहिंसा, संयम और तप के महत्व पर प्रकाश डाला जो कि लोक कल्याण के लिए आवश्यक है। मुनिश्री ने जन्म, मरण और जीवन के चक्र से मुक्ति पाने की भावना पर भी जोर देते हुए यह भी बताया कि कैसे एक शुभ और संस्कारवान परिवार में जन्म लेना सौभाग्य की बात है।
पंचकल्याणक समिति के अध्यक्ष सुरेन्द्र जैन एवं कोषाध्यक्ष राजीव जैन ने बताया कि पंचकल्याणक में जन्म कल्याणक, तीर्थंकर के जन्म से संबंधित एक महत्वपूर्ण घटना है। यह जैन धर्म के पांच प्रमुख ‘कल्याणकों’ (शुभ घटनाओं) में से एक है, जिसमें गर्भ कल्याणक, जन्म कल्याणक, दीक्षा कल्याणक, केवलज्ञान कल्याणक और मोक्ष कल्याणक शामिल हैं. जन्म कल्याणक, तीर्थंकर के जन्म के साथ मनाया जाता है, जहां जैन धर्म के अनुयायी खुशी मनाते हैं और मंगल गीत गाते हैं। पंचकल्याणक महोत्सव, जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है जो 6 से 8 दिनों तक चलता है। इस उत्सव में, तीर्थंकरों की मूर्तियों को प्रतिष्ठित किया जाता है और जन्म, दीक्षा, ज्ञान और मोक्ष जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं का उत्सव मनाया जाता है।
जन्म कल्याणक, पंचकल्याणक का दूसरा कल्याणक है। यह उस दिन को संदर्भित करता है जब तीर्थंकर बालक का जन्म होता है। इस अवसर पर, जैन धर्मावलंबी खुशी मनाते हैं, मंगल गीत गाते हैं और भगवान के जन्म का उत्सव मनाते हैं।
जन्म कल्याणक के दौरान, तीर्थंकर बालक को 1008 कलशों से पाण्डुक शिला पर अभिषेक किया जाता है। इसके बाद, भगवान को सुंदर वस्त्र पहनाए जाते हैं और माता-पिता को सौंपा जाता है।
यह उत्सव जैन धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और वे इसे उत्साह और भक्ति के साथ मनाते हैं। आज पांडुकशिला पर प्रथम अभिषेक का सौभाग्य श्रावक श्रेष्ठी संतोष कुमार, श्रीवत्स जैन परिवार को तो द्वितीय अभिषेक का सौभाग्य अनुज नवनीत जैन भादूगांव एवं अमृतश्री परिवार हरदा को प्राप्त हुआ । संध्याकालीन महाआरती का सौभाग्य अरविंद कुमार, जैन, प्रखर जैन, प्रयक जैन, प्रनय जैन सुश्री परिवार को प्राप्त हुआ ।