सर्व पितृमोक्ष अमावस्या पर हंडिया में जुटी भारी भीड़, प्रशासन रहा चौकस…
हरदा/हंडिया (सार्थक जैन) । सर्व पितृमोक्ष अमावस्या पर आज, हंडिया में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रही। कल शाम से ही नर्मदा घाटों पर श्रृद्धालु पहुंचने लगे थे, रातभर भूतों का मेला लगा। नर्मदा घाट पर जगह जगह पड़िहारों ने धाम लगाकर बाहरी बाधा से पीड़ित लोगों का तंत्र-मंत्र से इलाज किया। प्रातःकाल सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या पर आज हजारों श्रद्धालुओं ने नर्मदा स्नान कर पितरों का तर्पण किया। इस अमावस्या को भूतड़ी अमावस्या भी कहा जाता है। बाहरी बाधा से पीड़ित लोग पड़िहारों, ओझाओं के साथ मंगलवार शाम को ही हंडिया पहुंच गए थे। रातभर पड़िहारों, ओझाओं का तंत्र-मंत्र चलता रहा। बुधवार सुबह श्रद्धालुओं ने नर्मदा स्नान कर रिद्धनाथ बाबा व नर्मदा मंदिर के दर्शन किए।
प्रशासन ने सभी प्रमुख घाटों पर सुरक्षा इंतजाम किए थे। लाइटिंग की पर्याप्त व्यवस्था प्रशासन द्वारा की जाने से श्रृद्धालुओं को दिक्कत नहीं आई। राजस्व प्रशासन ओर पुलिस प्रशासन ने सजगता से अपने कर्मचारियों पटवारियों, आरक्षक ओर नगर सैनिकों को घाटों पर तैनात किया था। तहसीलदार, नायब तहसीलदार, होमगार्ड डिस्ट्रिक्ट कमांडैंट, थाना प्रभारी सहित वरिष्ठ अधिकारी रात भर भ्रमण करते रहे। हालांकि गत वर्षों की अपेक्षा इस वर्ष भीड़ कम थी। भीड़ का दबाव ज्यादा नहीं होने के कारण नर्मदा पुल पर रात को भी आवागमन चालू रहा ओर बड़े वाहन भी धीरे धीरे निकलते रहे ।
● पंडितों के अनुसार – सर्व पितृ अमावस्या पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है। पुराणों में इसका बहुत अधिक महत्व होता है। पुराणों के अनुसार मृत्यु के बाद शरीर मृत हो जाता हैं, लेकिन आत्मा अर्थात जीव अमर रहता है। मृत्यु के एक वर्ष बाद इस जीव को पितर कहा जाता है, इन पितरों की शांति के लिए श्राद्ध के किए जाते है। इस विधि को तर्पण कहते है। जिसमें प्रातः काल उठकर नदी पर जाकर पितरों को तर्पण कर फिर घर पर आकर पितरों के निमित काग भोजन गौ भोजन श्रान ग्रास निकालकर ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है ओर दान दक्षिणा की जाती है।
ऐसी मान्यता है कि इस ओर देखते हैं कि उनके परिवार जन उनकी मुक्ति के लिए क्या प्रयास कर रहे है। इस अवसर पर कुश की अंगूठी धारण कर कुश द्वारा पितरों को जल अर्पित किया जाता है।
● जैसे-जैसे रात गहराई पड़िहारों ने लगाई धाम, जमकर नाचे भूत – अमावस्या की काली अंधेरी रात में भूतड़ी अमावस्या पर बाहरी बाधाओं से पीड़ित लोगो को ठीक करने की प्रक्रिया के दौरान पडिहारो द्वारा धाम लगाई गई, जो अलग-अलग टोली मे थी। ढोलक, झांझ, मंझिरो की थाप पर झूमते पड़िहार अपने तंत्र मंत्रों से लोगों का इलाज कर रहे थे। जैसे-जैसे अमावस्या की रात गहरा की गई वैसे वैसे पडिहारो के झूमने की गति भी बड़ती जा रही थी। अंधेरी रात में पड़िहारों का झूमना, चिल्लाना भयानक दृश्य प्रस्तुत कर रहा था जो इंगित कर रहा था कि भूतों का मेला देखना हर किसी के बस में नहीं।
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